लव मेरेज़ ठीक है या अरैंज मेरेज़?

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Mehzabeen (Photo: Facebook)
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By मेहजबीं

(Editors’s note: This opinion piece in Hindi is written by Mehzabeen in New Delhi. It was first posted on her Facebook page.)

नई दिल्ली–अभी सोच रही थी कि लव मेरेज़ ठीक है या अरैंज मेरेज़…इस सवाल को पहले भी सोचा था युनिवर्सिटी में पढ़ती थी जब…तब तो हल ये निकाला था कि शादी चाहे लव हो चाहे अरैंज़ …उसकी बुनयाद बिरादरी क्षेत्र ज़ाति दहेज़ ना हो बल्कि लड़का लड़की एकदूसरे को डिज़र्व करते हों और दोनों की हैसियत लगभग सेम हो…लड़का – लड़की हमख़्याल हों अहसासमंद हों।

लड़का-लड़की एकदूसरे को पसंद करते हों पसंद नापसंद का उन्हें मौक़ा मिलना चाहिए… ये हक़ ईस्लाम में दिया गया है हज़ूर ने भी अपनी बेटी फ़ातिमा की पसंद पूछी थी। बहुत से लोग लड़का-लड़की को आमने-सामने बिठाकर एक मुलाक़ात करा देते हैं… मेरे हिसाब से थोड़ा वक़्त और देना चाहिए अरैंज़ मेरेज़ में भी क्योंकि एक मुलाक़ात में कोई कैसे किसी को जान सकता है।

जिन लोगों को लड़का-लड़की के बजाए बिरादरी क्षेत्र दहेज़ ज़ाति स्टैंडर्ड को ही शादी का  आधार बनाना होता है उनके लिए एक मुलाक़ात में हाँ ना मैं निर्णय करना शायद इतना मुश्किल नहीं है। मगर जो लड़का-लड़की संवेदनशीलता हमख़्याल नज़रिया अख़लाक़  को अपने हमसफ़र में ढूंडते हैं उन्हें तो वक़्त चाहिए ही…लड़कों को तो माँ -बाप फिर भी वक़्त दे देते हैं मगर लड़कियों को नहीं देते…बहुत ही प्रगतिशील फेमिली लड़की को सोचने के लिए और किसी के लिए हाँ ना में ज्वाब देने के लिए वक़्त देते हैं… अभी भी गाँव कस्बे या महानगरों की डी ग्रेड कॉलोनी में ऐसे परिवार हैं जो सिर्फ़ फोटो दिखाते हैं… फोन पर बात भी नहीं करने देते…बुरा समझते हैं हालांकि बहुत सी अरैंज़ मेरेज़ बाद में टूट जाती हैं,टूटने के कारण  होते हैं लड़का-लड़की को एकदूसरे का मिजाज़ अख़लाक़ सलूक़ नज़रिया या उन्हें एकदूसरे की सूरत शकल पसंद नहीं आती। ये तो उससे भी बुरा है… लड़कों की तो फिर भी दुबारा आसानी से शादी हो जाती है मगर लड़की के माथे पर एकबार तलाक़ का दाग़ लग जाए स्टेंप लग जाए तो नहीं धुलता सर्फ़ ऐक्सल से भी नहीं।

लड़की को शादी से पहले भी तनाव ही दिया जाता है उसपर दबाव बनाया जाता है लड़के का फोटू दिखा देंगे उससे बात भी करा देंगे मगर सब औपचारिकता ही होती है अधिकतर घरों में दबाव तो लड़की पर यही बनाया जाता है डायरेक्टली या इनडायेरेक्टली के वो ज्वाब हाँ में ही दे…अगर कोई इनकार कर देती है तो सब उसे नसीहत देने लग जाते हैं… जब अपनी मर्ज़ी ही चलानी होती है तो ये देखने दिखाने का ढकोसला ही क्यों …शायद इसलिए कि शादी के बाद लड़की के साथ ससुराल में कुछ असाधारण रवैया घटना हो तो वो अलग होना चाहे तो उसे ये कह सकें, हमने तो तुम्हें मौक़ा दिया था तब क्यों हाँ कही थी, अब हम समाज में क्या मुँह दिखाएंगे ,थोड़ा बहुत तो सब लड़कियों को निभाना बरदाश्त करना पड़ता है… और भाई भाभी का असल चेहरा तो तभी सामने आता है।

अभी फिर से इसी सवाल पर सोच रही हूँ लव मेरेज़ अरैंज़ मेरेज़ में से कौनसी बेहतर है ….तो ये लग रहा है कि बहुत सी लव मेरेज़ भी टूटती हैं… पूरी तरह से किसी के साथ रहने से ही किसी को जाना जा सकता है… लड़के लड़कियाँ लव मेरेज़ से पहले एकदूसरे के सामने अच्छा ही बनने की कोशिश करते हैं आधे से ज़्यादा तो झूठ भी बोलते हैं सारी असलियत शादी के बाद खुलती हैं लड़कियाँ भी लड़के को अहसास कराती हैं कि उनके फेमिली मेम्बर के साथ घुलमिल कर रहेंगी उन्हें स्पेस देंगी…मगर शादी के बाद वो बदल जाती हैं रिज़र्व रहती हैं…. इसी तरह लड़के भी शादी के बाद बदल जाते हैं कई बार अपनी पत्नी को इग्नोर कर फेमिली मेम्बर पर ज़्यादा तवज्जो देते हैं ,दूसरी लड़कियों से अफेयर तक चला लेते हैं, वही गर्लफ्रैंड जो शादी से पहले स्मार्ट लगती थी शादी के बाद बेकार लगने लगती है यदि थोड़ी सी भी हेल्दी हो जाए तो उसे बिल्कुल इग्नोर करने लगते हैं, घरेलू हिंसा गालीयाँ तो बीवियों को सहनी ही पड़ती हैं चाहे लव मेरेज़ हो चाहे अरैंज़…यहाँ तक की लड़के के दबाव में फेमिली वाले लव मेरेज़ के लिए तैयार तो हो जाते हैं मगर दिल से बहू भाभी को क़बूल नहीं करते और कहीं ना कहीं उसे सताते हैं, यहाँ तक की पति-पत्नी को अलग करने तक की कोशिश भी बड़ी सफाई से इनडायेरेक्टली करते रहते हैं।

जब एक लड़की को अरैंज़ मेरेज़ के बाद भी और लव मेरेज़ के बाद भी शारीरिक मानसिक आर्थिक दु:ख झेलना है तो फिर शादी लव हो या अरैंज़ उसे अपनी तालीम मुकम्मल करके और रोज़गार प्राप्त करके ही शादी करनी चाहिए ये बहुत ज़रूरी है लड़कियाँ यहीं कमज़ोर पड़ती हैं माँ बाप भाई भाभी के सामने घुटने टेक देती हैं …नहीं यहीं सबसे ज़्यादा मज़बूत और प्रोफशनल बनने की ज़रूरत है ससुराल वाले तो बाद में हक़ मारते हैं पहले एक लड़की का अधिकार माँ -बाप के घर में ही छिनता है शुरुआत यहीं से होती है ,यहीं की बुनयाद जैसी गिरेगी आगे की ज़िंदगी भी वैसी ही तय होगी…ग़ैब की ख़बर आकस्मिक घटना पर तो किसी का ज़ोर नहीं… मगर तालीम मुकम्मल करना रोज़गार याफ्ता होना ख़ुदमुख़्तार होना पिता की समपत्ति में अधिकार मिलना और अपनी पसंद ना पसंद से अपने शरीक़ेहयात को चुनना सब लड़कियों का अधिकार है तमाम रुहों से।

सब दहेज़ इकट्ठा करने में लगे रहते हैं लड़की के पैदा होते ही….सारी उम्र की कमायी जमापूंजी दहेज़ में दे देते हैं बेटी को, इस दहेज़ के चक्कर में भाई-भाभी भी परेशान होते हैं यहाँ तक की क़र्ज़ तक लेते हैं लोग….क्यों देते हैं दहेज़ क्यों क़र्ज़ करते हैं पिता और भाई ? दहेज़ की जगह उसे उच्च शिक्षा दिलाएं और उसे उसका हक़ दें दें, और अपनी पसंद से वर चुनने का हक़….कोई ज़रूरत नहीं बर्तन कपड़े महंगे डिनर सेट सोने चाँदी के हार बूंदे फर्नीचर कैश की रकम सास ससुर दामाद को देने की।

आप इतनी महनत से कमाया पैसा दहेज़ में देते हैं,उच्च शिक्षा लड़की को दिलाने के बाद भी, मुसीबत में ये सब लड़कियों के कोई काम नहीं आता..जब इतना सारा दहेज़ लाने के बाद भी लड़कियों को ससुराल में दु:ख झेलना पड़ता है उपेक्षित होना पड़ता है,गालियाँ सुननी पड़ती हैं मार खानी पड़ती है तो फिर फ्री की लव मेरेज़ ही ठीक है पैसे का नुकसान होने से तो बच जाता है।

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